Monday, December 30, 2019

कम पैसों में सोलो ट्रैवल कैसे करे !!!

सपना है पूरा जहां घूमने का, लेकिन एक दोस्त की ‘न’ से प्लान कैंसिल पर कैंसिल होते जाएं तो आप क्या करेंगी? किसी और के भरोसे बैठी रहेंगी? अपने गु्रप के हर सदस्य को मनातेमनाते ट्रिप के मौके गंवाती रहेंगी? वह समय गया जब मम्मी कहा करती थीं कि जहां जाना है शादी के बाद जाना. अब समय है कि दोस्त हों न हों, साथ जाने के लिए गु्रप हो न हो, उठो, सामान बांधो और अपनी मंजिल की ओर निकल जाओ.
सोलो ट्रैवल प्लान जितना डरावना लगता है, असल में वह उस से कहीं ज्यादा रोमांच भरा होता है. खासकर, लड़कियों को तो सोलो ट्रैवलिंग के लिए जाना ही चाहिए. यह न केवल आप के आत्मविश्वास को बढ़ाता है बल्कि आप को आंतरिक व बाहरी दोनों रूपों से मजबूत भी बनाता है. किसी अनजान शहर में घूमना, कहीं पहाड़ की चोटी से सूरज डूबते देखना, एक नई हवा, नई ऊर्जा को महसूस करना अलग एहसास है, जो सोलो ट्रिप पर ही आप को मिलता है. फैमिली ट्रैवल, गु्रप ट्रैवल और अपने पार्टनर के साथ ट्रिप पर जाने और अकेले ट्रिप पर जाने में बहुत फर्क है.

सोलो ट्रिप पर आप की निर्भरता खुद पर होती है किसी और पर नहीं, आप जहां चाहें, जैसे चाहें, अपनी मरजी से आजा सकते हैं, किसी और की मनमरजी के हिसाब से आप को कार्य नहीं करना पड़ता. दुनिया को देखने का नजरिया अकेले जाने पर अलग होता है. आप किसी पल शांत, तो किसी पल मस्ती से भरे हुए होते हैं, जिस में आप को रोकनेटोकने वाला कोई नहीं होता.
कम पैसों में सोलो ट्रैवल करना है तो इन बातों को दिमाग में बैठा लो !!!
एलोनेर रोजवेल्ट का एक मशहूर वाक्य  है कि 'जीवन का उद्देश्य सिर्फ जीना नहीं है, इसे नये-नये अनुभवों से चखना है। नए लोगों से मिलना है और गरीब-अमीर की फिक्र किए बिना बस चलते जाना है'। ये सभी काम एक ऑफिस में बैठा मशीनी आदमी कभी नहीं कर सकता, इसके लिए तो बेपरवाह लोग चाहिए, जिन्हें घुमक्कड़ भी कहा जाता है। तकनीक भरी दुनिया ने घूमने को भी सरल बना दिया है, जहाँ ऐसा लगता है घूमने नहीं पिकनिक मनाने आए हैं। इसलिए तो आज भी सोलो ट्रैवलिंग सबसे कठिन काम माना जाता है।

अकेले कहीं भी निकल जाना और नए-नए लोगों से मिलना, उसके बाद फिर आगे बढ़ जाना। ये सब सुनने में बहुत अच्छा और कूल लगता है लेकिन इस सोलो ट्रैवल में बहुत सारी दिक्कतें भी हैं। उन समस्याओं में सबसे बड़ी समस्या है, पैसे की बचत। घूमना बहुत महंगा नहीं है, अगर आप पर्यटक की तरह ना घूमें तो। इसलिए ट्रैवल करते समय बचत बहुत ज़रूरी है क्योंकि ये बचत मुश्किल समय में काम आती है। तो आइए जान लीजिए के घूमते समय इन बातों का ध्यान रखकर बचत की जा सकती है।

1. पहले से कर लें प्लानिंग
अगर आप कहीं भी घूमने जाने की सोच रहे हों तो उसके लिए बहुत पहले से ही प्लानिंग कर लें। आप अपने पास एक डायरी रखें और उसमें पूरी प्लानिंग को लिख लें। ज़रूरी नहीं है कि ये प्लानिंग ट्रैवल करते समय पूरी तरह से काम आए, लेकिन ऐसा करने पर आपके पास एक बढ़िया खाका तैयार होगा। पहले से प्लानिंग का फायदा ये भी है कि आप बहुत पहले सब कुछ बुकिंग कराते हैं तो ट्रांसपोर्ट से लेकर रूकने तक सब कुछ कम लागत में हो जाता है।

2. दिन के समय करें ट्रैवल
अगर आप सोलो ट्रिप पर हैं तो दिन में ट्रैवल करें। ऐसा इसलिए क्योंकि दिन में पब्लिक ट्रांसपोर्ट चलते हैं जिनका किराया बहुत कम होता है और रात को कम वाहन होते हैं जिसकी वजह से ऑटो और गाड़ी वालों के दाम आसमान छूने लगते हैं। साथ में रात में किसी भी जगह पर घूमना सेफ नहीं है, छोटे-मोटे चोर तो हर जगह होते हैं। लेकिन अगर एक शहर से दूसरे शहर जा रहे हैं जहाँ पहुँचने में 7-8 घंटे लगेंगे तो रात को सरकारी बस से जाना सही रहता है। सरकारी बसों का किराया हमेशा फिक्स रहता है।

3. स्थानीय लोगों से करें दोस्ती
एक ट्रैवलर के अंदर ये क्वालिटी तो होनी ही चाहिए। वो जिस जगह पर जा रहा है वहाँ के लोगों से घुले-मिले, उनके साथ दोस्ती करें। इससे फायदा आपका ही होगा। नए लोगों को पाकर हर कोई लूटने को तैयार रहता है लेकिन अगर आप किसी ऐसे शख्स के साथ हैं जो वहीं का है तो आप आसानी से कम लागत में घूम सकते हैं। इसका दूसरा फायदा ये भी है कि लोगों से मिलते रहने से रिलेशन बने रहते हैं जो आगे भी काम आ सकते हैं।

4. ज़रूरत का सामान लेकर चलो
अगर आप सोलो ट्रैवलिंग करने जा रहे हैं तो ये ज़रूर सुनिश्चित कर लें कि आप अपनी ज़रूरत का सामान लेकर जा रहे हों। बाद में ऐसा ना हो कि आप उस सामान पर खर्च कर रहे हों जो आप साथ लेकर चले नहीं। ये छोटी-छोटी चीज़ें ही घूमते समय बजट बिगाड़ सकती हैं। सोलो ट्रैवलर के पास घड़ी, मैप, मेडिसिन किट, पानी पीने की बोतल, लाइटर, चाकू और एक डायरी, जिसमें कुछ लोगों के फोन नंबर हों ये सब तो होना ही चाहिए।

5. अपने सामान की सुरक्षा स्वयं करें
ऐसा अक्सर होता है कि यात्रा करते समय हम सो जाते हैं और हमारा सामान किधर है, इस पर ध्यान ही नहीं देते, इसलिए सोलो ट्रैवलिंग में अपने सामान को अपने से ज़्यादा दूर ना होने दें। क्योंकि आपका सामान अगर आपसे मिस हो गया या चोरी हो गया तो आपकी यादगार होने वाली सोलो ट्रिप चौपट भी हो सकती है। इसलिए ज़रूरी सामान जैसे कैमरा, पैसे, पासपोर्ट छोटे से बैग में अपने पास रखें।

6. खूब पैदल चलें
अगर आप सोलो ट्रिप पर जा रहे हैं तो पैसे तो बचाने बहुत ज़रूरी है। इसके लिए सबसे बढ़िया काम है, खूब पैदल चलिए। अगर आप किसी शहर में तो उस शहर को पैदल नापें। वहाँ के बाजार, गलियों में पैदल घूमें इससे आप उस शहर को भी अच्छी तरह से जान लोगे और पैसे की बचत भी हो सकेगी। यूँ ही पैदल चलकर जो अनुभव आप पाओगे वो किसी कैब या टैक्सी में नहीं मिलेंगे।

7. पब्लिक ट्रांसपोर्ट से करें ट्रैवल
अगर आप लंबी दूरी की यात्रा तय करने जा रहे हैं तो पब्लिक ट्रांसपोर्ट सबसे बेस्ट ऑप्शन है। क्योंकि लंबी दूरी की यात्रा अक्सर महंगी होती है। ट्रैवलिंग करने से पहले ही उस जगह के बारे में अच्छे से जानकारी जुटा लेनी चाहिए, खासकर पब्लिक ट्रांसपोर्ट के बारे में। जहाँ आप ठहरे हो वहाँ के स्थानीय लोग अच्छे से इसके बारे में जानकारी दे देंगे।

8. लग्ज़री होटल नहीं, हॉस्टल-होम स्टे में ठहरें
ट्रैवल करते समय सबसे ज़्यादा खर्चा होता है वो है ठहरने में। घूमते वक्त सिर्फ हम रात बिताने के लिए जगह चाहते हैं और उसी कुछ घंटों के लिए हम इतना पैसा खर्च कर देते हैं जितना घूमने-फिरने में नहीं करते है। ठहरने में खर्चा इसलिए ज़्यादा होता है क्योंकि हम अच्छे-अच्छे होटलों की ओर भागते हैं लेकिन होटल की जगह हाॅस्टल और होम-स्टे में रूकें तो आपकी सोलो ट्रिप कम खर्च में बेहतरीन हो जाएगी। होटल में हम एक कमरे में बंद हो जाते हैं लेकिन ये हाॅस्टल बहुत सारे ट्रैवलर्स के साथ बातें करने का भी मौका देते हैं।

9. महंगी चीजें साथ ना लें
घूमते वक्त ये ध्यान रखना चाहिए कि आपके पास कोई कीमती चीज ना हो, जिससे आसपास के लोग आकर्षित हों और चोरी करने की सोचें भी। इसलिए जितना हो सके, उतने सिंपल रहने की कोशिश करें। सादापन ही आपकी ट्रिप बिना किसी खतरनाक अनुभव के पूरा करायेगा।

10. मैप पढ़ना सीखें
सोलो ट्रिप में आपके पास उस जगह का सिर्फ मैप ही नहीं होना चाहिए बल्कि उसे पढ़ना भी आना चाहिए। कभी-कभी होता है कि आप कहीं अकेले भटक जाओ और आसपास कोई पूछने वाला नहीं होता है तब ये मैप ही सबसे बड़ा नेटवर्क होता है। लेकिन अगर आप मैप को समझते नहीं हो तो ये मैप का होना, ना होने के बराबर होगा।

सोलो ट्रिप कूल है, अगर आप इन बातों का ध्यान रखेंगे। हो सकता है कि घूमते समय बचत करने के और भी तरीके हों लेकिन ये वो तरीकें हैं जिनको ज़रूर ध्यान में रखा जाना चाहिए। वैसे भी ये बचत करेंगे तो आप और ज़्यादा ही घूम सकेंगे।

अगर आप करना चाहती हैं सोलो ट्रैवलिंग तो इन 4 डेस्टिनेशन से बेहतर और कुछ नहीं

दार्जलिंग
पहाड़ों की खूबसूरती, ठंडी हवाएं और चाय के बागान की खूबसूरती को समेटे हुए है दार्जलिंग। अगर आप दार्जलिंग में टॉय ट्रेन का लुत्फ उठाना चाहती हैं तो जरुर जाएं। यहां लॉयड बोटोनिकल गार्डन में मौजूद दुर्लभ पेड़-पौधे भी आपको देखने को मिल जाएंगे। यहां पर आपको काफी अलग तरह का एंबियंस देखने को मिलेगा, जिसमें आपको मजा भी आएगा। महिलाओं के लिए अच्छी बात यह है कि आप यहां अकेले घूम सकती हैं।

ऋषिकेश
देवों की तपो भूमि उत्तराखंड में मौजूद ऋषिकेश सोलो ट्रैवलिंग के लिए बेस्ट ऑप्शन है। यहां देश भर के पर्यटकों के साथ-साथ दुनियाभर से लोग, रिवर रॉफ्टिंग, ट्रैवलिंग और एडवेंचर एक्टिविटीज का मजा लेने आते हैं। यहां अकेले घूमना पूरी तरह से सुरक्षित है। प्राकृतिक खूबसूरती से भरपूर ऋषिकेश में आपको सुकून और शांति का अहसास होगा।

पुडुचेरी
पुडुचेरी में आपको भारतीय संस्कृति के साथ-साथ फ्रांसीसी संस्कृति का मिला-जुला रूप देखने को मिलेगा। इस शहर की खास बात यह है कि इसे काफी मॉडर्न तरीके से फ्रेंच स्टाइल से बनाया गया है। पुडुचेरी में आपको कई फ्रेंच कॉलोनियां भी नजर आ जाएंगी। इस शहर में कई खूबसूरत चर्च और मंदिर के दर्शन किए जा सकते हैं। यहां आपको कई खूबसूरत बीच पर शाम गुजारने का मौका भी मिलेगा।

जयपुर
जयपुर महिलाओं के सोलो ट्रैवलिंग के लिए बेस्ट डेस्टिनेशन है। हवा महल, जल महल, सिटी पैलेस, आमेर का किला, जंतर-मंतर, नाहरगढ़ का किला, जयगढ़ का किला जैसे दर्शनीय स्थल हैं।

Ganesh Bhusari ( Travel Guru ) 
Travel Lover & Blogger 

Saturday, December 28, 2019

भारतातली १० ठिकाणं जी बॉलीवूडने प्रसिद्ध केलीत !!

भारतीय सिनेमात रोमॅन्स, ड्रामा, ट्रॅजेडीला जेवढं महत्त्व आहे,तेवढंच सिनेमा कसा दिसतो याला देखील आहे. सिनेमा चकचकीत दिसला की तो हिट ठरतो असं जुनं गणित होतं. त्यामुळेच तर सिनेमांचं चित्रीकरण करण्यासाठी खास लोकेशन्स ठरवली जायची. हिट सिनेमांनी आपल्या सोबत या ठिकाणांना पण प्रसिद्ध केलं. उदाहरणार्थ, थ्री इडियट्स सिनेमा. थ्री इडियट्स रिलीज झाल्यानंतर शेवटच्या दृश्यात दाखवलेला तलाव कुठे आहे आणि तिथे कसं जाता येईल याचं वेड आलं होतं. 

आज आम्ही हिंदी सिनेमाने प्रसिद्ध केलेल्या अशाच मोजक्या १० ठिकाणांची यादी आणली आहे. 

१. आमेर किल्ला

आमेर किल्ल्यात ‘बाजीराव मस्तानी’ सिनेमाचा सुरुवातीचा भाग चित्रित करण्यात आला होता. त्यासोबत सलमान खानचा ‘वीर’, ‘बोलबच्चन’ आणि 'जोधा अकबर' हे सिनेमे देखील या किल्ल्यात चित्रित झाले आहेत.

२. आग्वादा किल्ला

दिल चाहता है सिनेमातला तो प्रसिद्ध किल्ल्यावरचा सीन गोव्यातल्या आग्वादा किल्ल्यावर चित्रित करण्यात आला होता. रंगीला, गोलमाल, हनिमून ट्रॅव्हेल्स या सिनेमाचं शुटींग देखील या किल्ल्यावर झालं आहे.

३. हिडींबा मंदिर, मनाली

डोंगरदऱ्या, जंगल या प्रकारच्या स्थळांसाठी मनाली हे नेहमीच प्रसिद्ध राहिलेलं आहे. राजेश खन्नाचा ‘आप की कसम’ आणि ऋषी कपूरचा ‘हीना’ या दोन्ही सिनेमांनी मनालीला प्रसिद्ध केलं. काही वर्षांपूर्वी आलेल्या ‘यह जवानी है दीवानी’ सिनेमाने पुन्हा एकदा मनालीला चर्चेत आणलं होतं. सिनेमातील एका दृश्यात मनालीचं ‘हिडींबा मंदिर’ दाखवण्यात आलं आहे. सिनेमामुळे या मंदिराला भेट देणाऱ्यांची संख्या आता वाढली आहे. 

हे सगळं असलं, तरी मनालीतलं हिडींबा मंदिर पाह्यलं की थेट रोजा सिनेमाच आठवतो, हो ना?

४. पांगोंग त्सो तलाव, लडाख


थ्री इडियट्स सिनेमातलं शेवटचं दृश्य याच ठिकाणी चित्रित करण्यात आलं होतं.  ड्रोनच्या आधारे घेण्यात आलेलं हे दृश्य इतकं अफलातून होतं की सिनेमामुळे या तलावाला भेट देणाऱ्यांची संख्या एका रात्रीत वाढली. या परिसरातच ‘दिल से’, ‘जब तक है जान’ या सिनेमांचं शूटिंग झालं आहे.

५. वाराणसी

तसं बघायला गेलं तर वाराणसीचे घाट हे फार पूर्वीपासून प्रसिद्ध आहेत. त्याला आणखी प्रसिद्ध करण्याचं काम रांझणा सिनेमाने केलं. या सिनेमाचा इंटरव्हाल आधीचा बराचसा भाग वाराणसीच्या घाटांच्या भोवती फिरतो.

६. हावडा ब्रिज

बॉलीवूडचे दादामुनी अशोक कुमार यांचा हावडा ब्रिज नावाचा चित्रपट देखील आलेला. याखेरीज अनेक हिंदी सिनेमांमध्ये हावडा ब्रिज दिसला आहे. बंगालचा उल्लेख आल्यावर हावडा ब्रिज दिसला नाही असं होतच नाही. विद्या बालनचा ‘कहानी’, रणवीर-अर्जुन कपूरचा ‘गुंडे’, आणि रणवीरचा ‘बर्फी’ सिनेमात पण हावडा ब्रिज दिसला होता.

७. सुवर्णमंदिर, अमृतसर

सिनेमात दिसलेलं सुवर्णमंदिर असा जर विचार केला तर ‘रब ने बना दी जोडी’ हा सिनेमा नक्कीच आठवतो. याखेरीज ‘रंग दे बसंती’ सिनेमा आठवल्याशिवाय राहत नाही. या सिनेमातलं गुरुग्रंथसाहिब मधल्या ओळी असलेलं ‘एक ओंकार’ गाणं प्रसिद्ध झालं होतं. 

नुकतंच आमीर खानच्या आगामी ‘लाल सिंग चढ्ढा’ सिनेमाचं चित्रीकरण सुवर्णमंदिर येथे पार पडलं.

८. मुन्नारच्या चहाच्या बागा, केरळ

मुन्नार येथील चहाच्या बागा ‘चेन्नई एक्स्प्रेस’ सिनेमानंतर अचानक प्रकाशझोतात आल्या. यापूर्वी या ठिकाणी निशब्द आणि ‘लाईफ ऑफ पाय’ सिनेमांच शुटींग झालं आहे.

९. उदयपुरचा महाल, राजस्थान

‘यह जवानी है दीवानी’, ‘रामलीला’ या दोन सिनेमांचं चित्रीकरण उदयपुरच्या महालात झालं आहे. याखेरीज १९८३ साली आलेल्या जेम्स बॉंड मालिकेतल्या ‘ऑक्टोपसी’ सिनेमात हा महाल दिसला होता.

१०. गुलमर्ग, काश्मीर

काश्मीरचं गुलमर्ग हे ठिकाण बॉलीवूडचं लाडकं राहिलेलं आहे. अनेक गाणी, दृश्य या भागात चित्रित झाली आहेत. ये जवानी है दिवानी, हायवे, रॉकस्टार आणि हैदर या सिनेमांतल्या कथानकाचा मोठा भाग हा गुलमर्गच्या परिसरात घडतो. 

याखेरीज एक अपवादात्मक ठिकाण म्हणजे वाईचा घाट. आजकाल बऱ्याचशा सिनेमांमध्ये आपण जो उत्तर भारतातला प्रदेश बघतो तो खरं तर आपल्या महाराष्ट्रातल्या वाईचा घाट असतो.

तर मंडळी, ही होती बॉलीवूडने प्रसिद्ध केलेली भारतातली मोजकी १० ठिकाणं. तुम्हाला आणखी ठिकाणं आठवत असतील तर नक्की सुचवा.

Reference by: Bobhata 

Ganesh Bhusari 
( Travel Guru ) 

Tuesday, December 24, 2019

तिरुपती बालाजी पैदल यात्रा कैसे करे !!🚶‍♂🚶‍♀


भारत देश में धार्मिक पर्यटन सबसे ज्यादा प्रचलन में है। ऐसे पर्यटन का जीवन में खास महत्व रहा है-घूमने की दृष्टि से और आस्था के लिहाज से। दक्षिण भारत में तिरुपति एक ऐसी जगह है, जहां हर भारतीय भगवान बालाजी के दर्शन, लड्डू और भगवान का प्रसाद के लिए जाना चाहता है...आंध्र प्रदेश में तिरुपति से करीब २२ किलोमीटर दूर तिरुमाला पहाड़ियों पर भगवान वेंकटेश्वर बालाजी का विशाल परिसर वाला मंदिर है। तकरीबन ५० हजार से एक लाख लोग यहां रोज भगवान बालाजी के दर्शन करते हैं। मंदिर की गतिविधियां सुबह ५ बजे से शुरू होकर तकरीबन रात ९ बजे तक चलती रहती हैं। इतनी बड़ी संख्या में रोज भीड़ का प्रबंधन खुद में बड़ी बात है।

तिरुपति बालाजी के 10 रहस्य

भारत के सबसे चमत्‍कारिक और रहस्‍यमयी मंदिरों में से एक है भगवान तिरुपति बालाजी। भगवान तिरुपति के दरबार में गरीब और अमीर दोनों सच्‍चे श्रद्धाभाव के साथ अपना सिर झुकाते हैं। हर साल लाखों लोग तिरुमला की पहाड़ियों पर स्थित इस मंदिर में भगवान वेंकटेश्‍वर का आशीर्वाद लेने के लिए एकत्र होते हैं। मान्‍यता है कि भगवान बालाजी अपनी पत्‍नी पद्मावती के साथ तिरुमला में निवास करते हैं। ऐसी मान्‍यता है कि जो भक्‍त सच्‍चे मन से भगवान के सामने प्रार्थना करते हैं, बालाजी उनकी सभी मुरादें पूरी करते हैं। मनोकामना पूरी होने पर भक्‍त अपनी श्रद्धा के अनुसार यहां आकर तिरुपति मंदिर में अपने बाल दान करते हैं। इस अलौकिक और चमत्‍कारिक मंदिर से ऐसे रहस्‍य जुड़े हैं, जिन्‍हें जानकर आप भी दंग रह जाएंगे। आइए जानते हैं मंदिर से जुड़े ऐसे 10 रहस्‍य…

1) मूर्ति पर लगे बाल : कहा जाता है कि मंदिर भगवान वेंकटेश्‍वर स्‍वामी की मूर्ति पर लगे बाल असली हैं। ये कभी उलझते नहीं हैं और हमेशा मुलायम रहते हैं। मान्‍यता है कि ऐसा इसलिए है कि यहां भगवान खुद विराजते हैं।

2) समुद्र की लहरों की ध्‍वनि: यहां जाने वाले बताते हैं कि भगवान वेंकटेश की मूर्ति पर कान लगाकर सुनने पर समुद्र की लहरों की ध्‍वनि सुनाई देती है। यही कारण है कि मंदिर में मूर्ति हमेशा नम रहती है।

3) अद्भुत छड़ी: मंदिर में मुख्‍य द्वार पर दरवाजे के दाईं ओर एक छड़ी है। इस छड़ी के बारे में कहा जाता है कि बाल्‍यावस्‍था में इस छड़ी से ही भगवान बालाजी की पिटाई की गई थी, इस कारण उनकी ठुड्डी पर चोट लग गई थी। इस कारणवश तब से आज तक उनकी ठुड्डी पर शुक्रवार को चंदन का लेप लगाया जाता है। ताकि उनका घाव भर जाए।

4) सदैव जलता है यह दीया: भगवान बालाजी के मंदिर में एक दीया सदैव जलता रहता है। इस दीए में न ही कभी तेल डाला जाता है और न ही कभी घी। कोई नहीं जानता कि वर्षों से जल रहे इस दीपक को कब और किसने जलाया था?

5) मूर्ति मध्‍य में या दाईं ओर: जब आप भगवान बालाजी के गर्भ ग्रह में जाकर देखेंगे तो पाएंगे कि मूर्ति गर्भ गृह के मध्‍य में स्थित है। वहीं जब गर्भ गृह से बाहर आकर देखेंगे तो लगेगा कि मूर्ति दाईं ओर स्थित है।

6गुरुवार को लगाया जाता है चंदन का लेप:  भगवान बालाजी की प्रतिमा पर खास तरह का पचाई कपूर लगाया जाता है। वैज्ञानिक मत है कि इसे किसी भी पत्‍थर पर लगाया जाता है तो वह कुछ समय के बाद ही चटक जाता है। लेकिन भगवान की प्रतिमा पर कोई असर नहीं होता।

7) पचाई कपूर: भगवान बालाजी की प्रतिमा पर खास तरह का पचाई कपूर लगाया जाता है। वैज्ञानिक मत है कि इसे किसी भी पत्‍थर पर लगाया जाता है तो वह कुछ समय के बाद ही चटक जाता है। लेकिन भगवान की प्रतिमा पर कोई असर नहीं होता।

8) नीचे धोती और ऊपर साड़ी: भगवान की प्रतिमा को प्रतिदिन नीचे धोती और ऊपर साड़ी से सजाया जाता है। मान्‍यता है कि बालाजी में ही माता लक्ष्‍मी का रूप समाहित है। इस कारण ऐसा किया जाता है।

9) यह है अनोखा गांव: भगवान बालाजी के मंदिर से 23 किमी दूर एक गांव है, और यहां बाहरी व्‍यक्तियों का प्रवेश वर्जित है। यहां पर लोग बहुत ही नियम और संयम के साथ रहते हैं। मान्‍यता है कि बालाजी को चढ़ाने के लिए फल, फूल, दूध, दही और घी सब यहीं से आते हैं। इस गांव में महिलाएं सिले हुए कपड़े धारण नहीं करती हैं।

10) मूर्ति को आता है पसीना भी: वैसे तो भगवान बालाजी की प्रतिमा को एक विशेष प्रकार के चिकने पत्‍थर से बनी है, मगर यह पूरी तरह से जीवंत लगती है। यहां मंदिर के वातावरण को काफी ठंडा रखा जाता है। उसके बावजूद मान्‍यता है कि बालाजी को गर्मी लगती है कि उनके शरीर पर पसीने की बूंदें देखी जाती हैं और उनकी पीठ भी नम रहती है।

तिरुपती बालाजी मंदिर पैदल यात्रा कैसे करे ...!!!

तिरुपती बालाजी पैदल यात्रा करने के लिये दो मार्ग है.  अलीपीरि और श्रीवरी मेटु. 

1) Alipiri : ( First Route )

The Gate way to Tirumala Venkateswara Temple

Where is Alipiri?

Alipiri is situated at the foot of Tirumala hills and is the starting pointing of Walking steps to Tirumala. It is also known as Alipiri Padala Mandapam and also The Gate Way to Tirumala Venkateswara Temple. The three ways to reach Tirumala Foot Steps, One Road way up and One Road down meets here. Anyone starting to Tirumala from Tirumala has to go through Alipiri.

What is the Meaning of Alipiri?

Alipiri means “Resting Place”. In older days pilgrims used to climb all the seven hills only through the stepped way on foot, as there was no other option. Hence the pilgrims came from long distances used to take rest for some time there, cooked their food, eat there. After taking rest they started to climb the steps. And hence this place has got its name for this custom.

Alipiri Today

Nowadays all the stepped way is covered with roof to protect the pilgrims from sun light and rain. The lights are also provided. Special privilege is provided to the pilgrims who came on foot for the visit of the god. There are two temples in Alipri and two Gopurams. For people who are going through walk from Tirumala, can drop their luggage here in the luggage counter and can walk. The luggage can be collected in the Luggage center in Tirumala, which will transferred in two hours. Also, at Alipiri, a security zone was established, in 2009, to screen vehicles and pilgrims entering Tirumala, to safeguard the hills from terrorists and anti-social elements.

Footsteps to Tirumala

There is an ancient footsteps path to Tirumala, that starts from Alipiri known as Alipiri Metlu. The Devotees to fulfil their Vow to Lord Venkateswara will take this path to reach Tirumala on foot from Tirupati. It consists of a total 3550 Steps which makes a distance of 11 km. There are Four Gopurams(Temple Towers) on the way. It is completely roofed and passes through seven hills which are part of Seshachalam Hills.

Alipiri and Tirumala Walking Path Timings:


Distance to Tirumala: 11 km

Steps: 3550

Time To walk: Usually 4-6 hours depending on person

Timing: Will be Opened 24 x 7.

Token: Divya Darshan Tokens will be given at Gali Gopuram 2.

How to reach: TTD Free buses will be available from Tirupati Railway Station / Srinivasam Complex.

Toilet: Toilet facilities will be available on the way.

Food: Various food stalls will be available on the way.

Parking: Parking is available in Zoo park road beside the Alipiri Mettu starting point.

Facilities: Completely Roofed path with Water Facility to each 50 steps and Hotels near Gali Gopuram (After 1800 steps)

Timings: Open 24 hours


How to Reach Alipri & Tirumala Foot Steps

Alipiri is 4 km from Tirupati Bus stand and Railway station. You can take TTD Free bus to Alipiri from Bus stand or Railway  station. Or You can get in to any Tirumala bus and can get down at Alipiri.

2) Srivari Mettu: ( Second Route ) 

Srivari Mettu, which is near Srinivasa Mangapuram is an alternative walk path to Tirumala. Many pilgrims prefer Srivari Mettu to Alipiri Mettu, due to its easy to climb nature and less number of steps. Srivari Mettu is around 20 kilometres from the city of Tirupati. It is said that, Lord Venkateswara himself travelled in this route to reach Tirumala from Srinivasa Mangapuram.

The story behind Srivari Mettu is, after getting married to Sri Padmavathi Devi, Lord Venkateswara was asked to stay in Srinivasa Mangapuram for 6 months after marriage and not to climb Tirumala Hills. It is said that Lord Venkateswara along with Padmavati Devii has stayed in Srinivasa Mangapuram for 6 months that he has travelled to Tirumala through Srivari Mettu.

Pilgrims who wants to travel and trek through Srivari Mettu can also visit Srinivasa Mangapuram Temple.

Details of Srivari Mettu:

Number of steps: 2388

Total distance to Tirumala: 2.1 kilometres

Distance from Tirupati to Sri Vari Mettu: 20 kilometre

Time taken to reach Tirumala: 2-3 Hours approximately.

Timings of Srivari Mettu: 6 AM to 6 PM

Parking facility: Yes

Luggage counter facility: Yes

How to Reach Srivari Mettu

You can reach Sri Vari Mettu through 3 ways.

1) You can the free bus from Tirupati Bus stand an Railway Stations, which takes pilgrims directly to Sri Vari Mettu. These free buses runs frequently from Tirupati and one can catch these buses for every 30 minutes.

2) You can take a bus from the APSRTC Bus stand which runs to Rangampet, Madanapalli and can get down at Srinivasa Mangapuram. From Srinavasa Mangapuram, you can take a auto rickshaw to Sri Vari Mettu. But don’t prefer this mode unless you are clean enough of the route as well as location of Bus stops in Tirupati Bus stand.

3) You can hire a private jeep or auto from Tirupati to Sri Vari meetu. This mode of transport is very costly and sometimes drivers may charge you double.

Facilities at Sri Vari Mettu:

Sri Vari Mettu has good number of facilities like parking, luggage counter and food outlets. You can park your vehicles here and can come back by Srivari Mettu itself and take back your vehicles.

The entire path is protected by Sun Shades, Drinking water facilities and Toilets throughout the path

Note:If you take Sri Vari Mettu path to Tirumala, you will reaching Tirumala near MBC Gardens. Luggage counter will be neaby this end. Please note this before you take this path to Tirumala.

Ganesh Bhusari ( Travel guru ) 

Travel Lover & Blogger 

Phone: +9189999350044

Email: bhusaritourism@gmail.com

Thursday, December 12, 2019

केरळ ! देवांचा देश.


"फिराला जायाचं , फिराला जायाचं"
"पण कुठं जायाचं "
"केरळला"
"का? तिकडेच का?"

अरबी समुद्र, पश्चिम घाट यांच्यामध्ये विसावलेल्या केरळची सृष्टी सौंदर्याबद्दल ख्याती आहे. पर्यटन स्थळामध्ये केरळने उच्चस्थान पटकावले आहे. केरळ म्हणजे नारळाच्या हिरवगार बागा, फेसाळलेले सागरकिनारे आणि कोरीव शिल्पांची पुरातन मंदिरे या गोष्टी प्रेक्षणीय आहेत. या सर्व एव्हरग्रीन केरळच्या पॉप्युलर, प्रीमियम आणि ऑफबीट टूर्स पर्यटक कधीच विसरणार नाहीत. त्या त्या ठिकाणाप्राणे उत्तोत्तम हॉटेल्सही समाविष्ट आहेत. कोचीन, कुमारकोम, कोवालम्, मुन्नार ही केरळमधील प्रीमियम डेस्टिनेशन्स, बॅकवॉटरवर वसलेले छोटेसे बेट कुमारकोमल जेथे गेल्यावर आयलँड गेल्याचा भास होतो तर कोवाल हे एक सुंदर असे बीच डेस्टिनेशन आहे. केरळमध्ये निसर्गाचे वैविध्य लाभलेली अनेक ऑफ बीट डेस्टिनेशन्स आहेत. त्यातील एक म्हणजे पुवर! एक सिनिक ब्युटी म्हणून पुवर बीच प्रसिद्ध आहे. मनमोहक बीच, सदाबहार वनराई, हिरवेगार चहाचे मळे, उंचच उंच नारळ आणि ताडाची झाडे, निळाशार समुद्र यामुळे पर्यटक बाराही महिने येत असतात. २२ जुलै  तारखेला सकाळी ४. ०० ला अहिल्यानगरी एक्सप्रेस ने नागपूर  सोडले आणि गाडी केरळला पोहोचायच्या आधीच गणेशाच्या फोटोसारखे केरळचे दर्शन होईल असे दृष्य नजरे समोरुन जायला लागले.

गाडीने जसे महाराष्ट्र  सोडले तसा बाजुचा निसर्ग हिरवागार झाला. संध्याकाळी ६.०० वाजेपर्यंत आम्ही तामिळनाडू राज्यात  पोहचलो. आणि सकाळ होईस्तोवर गाडीने संपुर्ण तेलंगणा आणि तामिळनाडू पार केले होते. सकाळी उठलो तर पहिल्या केरळच्या स्टेशनचे दर्शन झाले नाव होते पल्लक्कड . लोहमार्गाच्या दोन्ही बाजुला सगळी नारळाच्या झाडांची माडी होती. या झाडांच्या माडीत तिथल्या लोकांची टुमदार एकमजली बंगले आहेत. तर थिरुरला केळीच्या बागा पहायला मिळाल्या. काही ठिकाणी मोठ्या नद्या समुद्रला जावुन मिळत होत्या. धावत्या गाडीतुन त्याचे काही फोटो घेतले.

अशा प्रीमियम केरळची सुरूवातच कोचीनमधील केरळचा सांस्कृतिक नजराणा, कथकल्ली नृत्याच्या लाइव्ह परफॉर्मन्सने होते. त्यानंतर हार्बर क्रूझ राईडमधून फिरताना चायनीज फिशिंग नेटचा अप्रतिम नजारा पाहता येतो. कोचीनच्या ताज मलबार या लक्झुरियस हॉटेलमधील लंचचा स्वाद सदैव जिभेवर तरळतो.

हे त्या आकर्षणांपैकी एक आहे ज्याचे देशात आणि परदेशात पर्यटकांसाठी पर्यटन स्थळाच्या रूपात केरळच्या प्रसिद्धित मोठे योगदान आहे. तीन पर्वत रांगा- मुथिरपुझा, नल्लथन्नी आणि कुंडल ह्यांच्या संगमावर वसलेले आहे आणि समुद्रसपाटीपासून त्याची उंची अंदाजे 1600 मी आहे. मुन्नारचे हिल स्टेशन कधीकाळी दक्षिण भारताच्या पूर्वकालीन ब्रिटिश प्रशासनाचे उन्हाळी रिसॉर्ट.
या हिल स्टेशनची ओळख आहे इथल्या विस्तिर्ण भू भागात पसरलेली चहाची शेती, वसाहती बंगले, छोट्या नद्या, झरे आणि थंड हवामान. ट्रेकिंग आणि माउंटेन बाइकिंगसाठीही हे एक आदर्श स्थळ आहे. 

चला आता मुन्नार आणि आजूबाजूचे काही अन्य पर्याय शोधूया जे मुन्नारच्या मोहक हिल स्टेशनचा आनंद लुटण्यासाठी पर्यटकांना पुरेशा संधी देतात. 

इरवीकुलम राष्ट्रीय उद्यान मुन्नार आणि त्याजवळील भागातील एक महत्त्वाचे आकर्षण म्हणजे इरवीकुलम राष्ट्रीय उद्यान होय. हे उद्यान मुन्नारपासून साधारण 15 किमीदूर अंतरावर असून लुप्तप्राय होत चाललेला प्राणी –“नीलगिरी टार” साठी हे ओळखले जाते. 97 चौ.किमी अतंरापर्यंत पसरलेले हे उद्यान दुर्मिळ जातीची फुलपाखरे, वन्यजीव आणि पक्षांच्या अनेक दुर्लभ जातींचे आश्रयास्थान आहे. हे स्थान ट्रेकिंगसाठी सर्वोत्तम आहे. उद्यानातील चहाचे विस्तृत मळे आणि त्याचबरोबर पर्वतरांगावर वेढलेली धुक्याची दाट चादर यांचे एक मनमोहक दृष्य येथे पहावयास मिळते. नीलकुरिंजीच्या फुले फुलल्यानंतर जेव्हा पर्वताची उतरण जणु काही नीळ्या रंगाच्या चादरीने झाकली जाते ,तेव्हा तर हे उद्यान पर्यटकांसाठी प्रथम पसंतीचे ठरते. हे (नीलकुरिंजीचे) झाड पश्चिमी घाटातील या भागातील स्थानिक झाड आहे, ज्याला बारा वर्षातून एकदाच फुले येतात. याआधी 2006 साली याला फुले आली होती.

आनामुडी शिखर हे इरवीकुलम राष्ट्रीय उद्यानाच्या आतील भागात आहे. 2700 मीटरपेक्षा अधिक उंच असलेले हे शिखर दक्षिण भारतातील सर्वात ऊंच शिखर आहे. शिखरावर ट्रेकिंग करून चढण्यासाठी इरवीकुलम येथील वन आणि वन्यजीवन प्राधिकरण यांच्याकडून अनुमती घ्यावी लागते..
माट्टपेट्टी मुन्नार शहरापासून दूर 13 किमी अंतरावर दुसरे एक आकर्षक स्थान आहे ते म्हणजे माट्टपेट्टी. हे समुद्रसपाटीपासून साधारण 1700 मीटर उंचावर आहे. माट्टपेट्टी हे मेसनरी धरणाचे स्टोरेज/आश्रयस्थान म्हणून तसेच सुंदर तलावासाठी ओळखले जाते.येथे पर्यटकांसाठी पर्वतरांगा आणि आजूबाजूची प्राकृतिक दृश्ये यांचा आनंद लुटताना सुखकर अशा नौकाविहाराची सोयही उपलब्ध आहे. माट्टपेट्टीच्या प्रसिद्धिचे श्रेय इंडो- स्विस लाइव्हस्टॉक परियोजनेद्वारा संचालित डेअरी उद्योगाला देखील जाते. येथे तुम्ही अधिक प्रमाणात दूध देणार्याप गायींच्या जाती पाहू शकता. हिरवेगार चहाचे मळे, वर-खाली असलेली गवताची कुरणे आणि शोला वनाबरोबरच माट्टपेट्टी हे ट्रेकिंगसाठी देखील आदर्श स्थळ आहे. याचबरोबर वेगवेगळ्या प्रकारच्या पक्षांचे निवासस्थान म्हणून हे ठिकाण ओळखले जाते.
पल्लिवासल हे मुन्नार मधील चितिरपुरमपासून साधारण 3 किमी दूर अंतरावर स्थित आहे. हे केरळमधील पहिले हायड्रो-इलेक्ट्रिक परियोजना स्थळ आहे. हे ठिकाण व्यापक प्राकृतिक सौंदर्याने बहरलेले आहे आणि पर्य़टकांचे आवडते सहलीचे स्थळ आहे.
चिन्नकनाल हे मुन्नार शहराच्याह जवळ असून येथील धबधबे हे पॉवर हाऊस वॉटरफ़ॉल या नावाने ओळखले जातात.या धबधब्याचे पाणी समुद्रसपाटीपासून 2000 मीटर उंच शिखरावरून खाली पडते. हे स्थळ पश्चिमी घाटातील पर्वतरांगांच्या नैसर्गिक दृष्यांनी समॄद्ध आहे. 
अनयिरंगल चिन्नकनालपासून साधारण सात किमी अंतर जेव्हा तुम्ही पार करता तेव्हा अनयिरंगल हे ठिकाण लागते. मुन्नारपासून 22 किमी दूर अंतरावर असणारे अनयिरंगल हे चहाच्या हिरव्यागार झाडांचा जणुकाही गालिचाच आहे. येथील शानदार जलाशयाची सफ़र हा तर एक अविस्मरणीय अनुभवच ठरतो. अनयिरंगल धरण हे चारही बाजूंनी चहाचे मळे आणि सदाबहार अशा हरित वनांनी घेरलेले आहे.
टॉप स्टेशन म्हणजे मुन्नारपासून साधारण 3 किमी दूर अंतरावर असलेले टॉप स्टेशन हे समुद्र सपाटीपासून 1700 मी. उंचीवर आहे.मुन्नार – कोडईकॅनाल मार्गावरील हे सर्वात उंच स्थान आहे. मुन्नारला येणारे पर्यटकदे खील टॉप स्टेशनला थांबून तेथून दिसणार्याा शेजारील तामिळनाडू राज्यातील विहंगम दृष्यांचा आनंद लुटतात. मुन्नारमध्ये विस्तृत प्रमाणात पसरलेली नीलकुरिंजीची फुललेली फुले पाहण्यासाठी देखील हे एक उपयुक्त स्थान आहे. 

मुन्नार मधील चहा संग्रहालय चहाच्या मळयांची उत्पत्ति आणि विकासाच्या दृष्टीने मुन्नारला आपली अशी एक स्वतंत्र परंपरा आहे. ह्या परंपरेला ध्यानात घेता, केरळमधील ऊंचच ऊंच पर्वतरांगांमधील चहाच्या मळ्यांची उत्पत्ति आणि विकासाच्या काही सूक्ष्म आणि आकर्षक पैलूंना सुरक्षित ठेवण्यासाठी आणि प्रदर्शनीय ठेवण्यासाठी मुन्नारमध्ये टाटा टी द्वारा काही वर्षांपूर्वी एका संग्रहालयाची स्थापना केली गेली. या चहा संग्रहालयामध्ये दुर्लभ कलाकृती, चित्रे आणि यंत्रे ठेवली गेली आहेत ज्यांना स्वतःची अशी वेगळी कहाणी आहे. ही सर्व मुन्नारमधील चहाच्या मळ्यांची उत्पत्ति आणि विकासाच्या बाबत सांगतात. हे संग्रहालय टाटा टीच्या नल्लथन्नी इस्टेट पैकी एक दर्शनीय स्थळ आहे. येथे जरूर जा.

आमचा पुढील मुक्काम आलेपा ला होता अल्लेप्पी केरळला देवांची भूमी असे म्हटले जाते , त्यातही अल्लेप्पी किंवा अलाप्पूझा हे केरळमधील एक पर्यटकांच्या प्रथम पसंतीचे व अत्यंत आवडते आणि लाडके असे ठिकाण आहे. अल्लेप्पीला चहूबाजूंनी अरबी समुद्राने वेढलेले असून याला ‘ पूर्वेचे व्हेनिस ’ म्हणूनही ओळखले जाते. येथील आसमंतात निसर्गाने आपला अमूल्य नजराणा जागोजागी मुक्त हस्ते उधळला असल्याचे दृष्टोत्पत्तीस येते.अरबी समुद्र व त्याला चहूबाजूंनी येऊन मिळणार्याि सहा आडव्या उभ्या नद्यांमुळे तयार झालेल्या जाळ्यांत अल्लेप्पी वेढले गेले आहे. येथे सहा गोड्या पाण्याच्या नद्यांखेरीज अनेक प्रवाह,तलाव,विस्तीर्ण सरोवरे, जलाशय व ओढे एकमेकांना छेदतात व त्यामुळे त्यांच्या मध्ये जे पाण्याचे खूप रुंद पट्टे (कॅनाल) बनतात त्यातूनच बोटीतून पर्यटकांना सफर घडवली जाते. सभोवतालच्या मनोहर निसर्गाचे मन लुभावणारे अप्रतिम व अवर्णनीय सृष्टी सौंदर्य पाहतांना भान हरपून जाते,तहान-भूक विसरायला होते.कितीही डोळे भरून पाहून घेतलेतरी मनाचे तृप्तीच होत नाही. परतूच नये असे वाटते. प्रत्येकाने आयुष्यात एकदा तरी केरळला व त्यातही अल्लेप्पी येऊन हा अलौकैक अनुभव स्वत: प्रत्यक्ष घ्यावाच. आलेप्पी येथे हॉउसबोट चा आनंद घेता येतो . तलावाच्या सभोवतालच्या गावांचे दृष्य तुम्हाला एका वेगळ्याच  जगाकडे घेऊन जातात .अलेप्पे हे केरळचे सहावे सर्वात मोठे शहर आहे, कोचीच्या ६२ किमी दक्षिणेस त्रिवेंद्रमपासून १५५ किमी अंतरावर आहे. आपण जलपर्यटन जहाजात जाऊ शकता, समुद्री लाटांवर प्रवास करणे हे काहीतरी वेगळंच आहे.हा प्रवास आमच्यासाठी  खूप रोमांचक होता ..

मुन्नार नंतर आह्मी सकाळी थेक्कडीला जायला निघालो आणि साधारण बाराच्या सुमारास तिथे पोचलो . ते थंड हवेच ठिकाण आहे. दुपारी तिथली स्पाईस गार्डन बघितली. नंतर हत्तीच्या राईड वगेरे होत्या तिथे ही गेलो. लोकल शॉपिग केल.

आमचे केरळ मधील जसजसे दिवस जात होते आम्ही केरळी संस्कृती सोबत एकरूप होत होतो. थेक्कडी नंतर आम्ही  सकाळी हॉटेल मध्ये केरळी ब्रेकफास्ट घेतला आणि पेरियार नदीतल्या फेरफटक्याला निघालो. छान वाटल. पण आम्हाला प्राणी नाही फार दिसले. दुपार तशी मोकळीच होती त्या वेळेत तुम्ही केरळी मसाज, किंवा कथकली नृत्याचा कार्यक्रम पहाणे वैगेरे करु शकता. आता पर्यन्त आम्ही केरळ मध्ये बरेच रुळलो होतो . थोडी थोडी मल्याळम भाषा सुद्धा समजायला लागली होती . सकाळी गुरुवायुर ला जायला निघालो. गुरुवायुर अंतर खूप नसले तरी रस्ते अरूंद आणि सततची मनुष्य्वस्ती. त्यामूळे केरळमध्ये कुठे ही वेग घेता येतच नाही गाडीला. आम्ही साधारण एक च्या सुमारास पोचलो तिथे पण दिड वाजता दुपारी देऊळ बंद झाल ते चार वाजता उघडण्यासाठी. जेवण, खरेदी वैगेरे टाइम पास केला मग. तिथे आम्हाला पहिल्यांदा केळीच्या पानावर केरळी जेवण मिळाले. नाहीतर हॉटेल मध्ये जनरली फक्त ब्रेकफास्ट केरळी आणि लंच , डिनर पंजाबी असा प्रकार आहे तिथे. गुरुवायुरच मंदिर फार सुंदर आहे. दर्शन घेईपर्यंत संध्याकाळ होतच आली होती म्हणून मग आणखी थोडा वेळ थांबून तेलाच्या दिव्यात प्रकाशलेले मंदिर बघितल आणि मग कोचीन ला यायला निघालो. तुम्ही पाहिजे तर एक दिवस मुकाम करा गुरुवायुरला . लक्ष लक्ष तेलाच्या दिव्यांच्या प्रकाशात उजळलेले मंदिर बघणे हा एक अविस्मरणीय अनुभव आहे फार सुंदर आहे ते. चुकवु नका. दुसर्‍या दिवशे लवकर उठुन कोचीनला येऊ शकता. आमच्या ट्रिपचा शेवटला टप्पा म्हणजे त्रिवेंद्रम . त्रिवेंद्रम प्रसिद्ध आहे आपल्या भव्य मंदिरासाठी . त्याच पैकी एक म्हणजे पद्म्नाभ मन्दिर , एक राजवाडा, राजा रविवर्मा चित्र गॅलरी वैगेरे बघितल. पद्म्नाभ मंदिरात लुंगी किंवा धोती लागतेच पुरषांना त्यामुळे घेऊन जाणे इष्ट. अर्थात तिथे ही विकत मिळतेच. त्रिवेंद्रम शहर खूप कोझी वाटले त्रिवेंद्रम मधली दागिन्यांची दुकान पहाच पहा. खूपच हेवी जुवेलरी असते त्यांची. संध्याकाळी त्रिवेंद्रम पासुन जवळ असलेल्या प्रसिध्द बीच वर गेलो.

अश्या प्रकारे आमची केरळ सहल संपली . पण केरळ मधील त्या आठवणी आयुष्यभरा  साठी मनात  साठवून आम्ही आमच्या धावपळी च्या जीवनासाठी परत नागपूर ला निघालो. एका परिकथेतील विश्व बघितला होता आम्ही . केरळ मधील ते शुभ्र धबधबे , हिरवेगार चहाचे मळे , उंच पहाड , उसळणाऱ्या नद्या , आणि निळा समुद्र या सगळ्या गोष्टी मनाला आनंदीत करून गेला .येथे  येऊन कळले केरळ ला का बरं म्हणतात गॉड्स ओन कंट्री ..... अर्थात केरळ !!!

Ganesh Bhusari ( Travel Guru ) 
Travel Lover & Blogger 

Monday, December 9, 2019

माझी श्रीलंका वारी

मागील वर्षीच्या दुबई ट्रिप नंतर या वर्षी कुठे फिरायला जायचे यावर बराच विचार झाला. दुबईनंतर कंबोडिया, भूटान यांवर चर्चा झाली पण काही लोकांनी पाहिले असल्यामुळे विषय मागे पडला. मागच्या वेळी मानवनिर्मित चमत्कार बघितले, त्यामुळे यावेळी नैसर्गीक ठिकाण पाहावे असेही एक मत होते. त्यामुळे अंदमान, मालदीव,भूतान यावर चर्चा झाली आणि अखेरीस बऱ्याच ठिकाणांचा विचार करून श्रीलंका ठिकाण नक्की  झाले.
श्रीलंका या देशाविषयी क्रिकेट, रावण आणि LTTE या व्यतिरिक्त काहीही माहीत नव्हते, तसेच श्रीलंकेमधील कोणत्याही प्रसिद्ध ठिकाणाविषयी माहिती नव्हती. त्यामुळे प्रथम श्रीलंकेतील प्रसिद्ध ठिकाणांबद्दल इंटरनेट वरून माहिती काढली. एका रविवारी मागच्या ट्रीपच्या संपूर्ण टीम यांना पण भेटून आलो. या वेळी आपणच संपूर्ण ट्रिप प्लॅन करावी असे वाटत होते आणि त्याचाच एक भाग म्हणुन मित्रांशी संपर्क केला आणि त्यांनी सुचवलेली ठिकाणे आणि आम्ही इंटरनेट वरून पाहीलेली ठिकाणे यांचा अभ्यास करून अंतिम ठिकाणांची यादी निश्चित केली. हॉटेलचे बुकींग एजंट कडून घेतले आणि विमानाचे बुकिंग आम्हीच केले. या सर्व खटाटोपामुळे ट्रिप ची किंमत खूप कमी झाली आणि स्वतः ट्रिप ठरवल्याचे समाधान पण मिळाले. या वेळी आम्ही एकंदरीत १७ जणांचा ग्रूप तयार झाला. आणि नागपूर विमानतळावरून पहाटे चार वाजता आमचा प्रवास सुरू झाला. श्रीलंका विमानतळा एअरपोर्ट वरील सर्व सोपस्कार पूर्ण करून बाहेर आलो. बाहेर ट्रिपचा guide वाटच पाहात होता. दुपारची वेळ होती आणि जायचे ठिकाण जास्त लांब नसल्यामुळे एअरपोर्ट वर थोडा आराम करून निघायचे ठरले. दुपारीच कॅंडी कडे जायला सुरुवात केली. दुपारी साधारण २ ला कॅंडी मध्ये पोहचलो. एका चांगल्या  हॉटेल मध्ये नाश्ता केला आणि ट्रिपचे पहिले ठिकाण म्हणजे बोटॅनिकल गार्डन बघायला निघालो. Temple ऑफ tooth हे एक बुद्धांचे एक सुंदर मंदिर आहे. गौतम बुद्धाचा एक दात इथे जतन करून ठेवला आहे. तो एका पेटीत कायम बंद असतो आणि तो दर्शनाला ठेवत नाही. तो दर्शनाला कायम ठेवला तर कॅंडी मध्ये खूप पाऊस पडून नुकसान होते  अशी लोकांची भावना आहे, म्हणून ५ वर्षातून एकदा लोकांना दर्शनासाठी ठेवला जातो. पूर्वी हे मंदिर म्हणजे  श्रीलंकेच्या शेवटच्या राजाचा महाल होता, नंतर त्याला मंदिरामध्ये बदलण्यात आले. राजवाडा आणि मंदिर एकदम छान होते. १ तास इथे घालवल्यानंतर आम्ही आमच्या पहिल्या हॉटेल हिलटॉप मध्ये दाखल झालो
जेवण आणि थोड्या वेळ आराम केल्यावर ‘Cultural show’ बघायला बाहेर पडलो. श्रीलंकन संस्कृतीचे दर्शन  घडवणारा कार्यक्रम चांगला होता. कार्यक्रम संपल्यावर  हॉटेलवर येऊन आराम केला. सहलीचा दुसरा दिवस आज सकाळी आम्ही तयार होऊन प्रथम ‘Elephant Orphanage’ म्हणजेच हत्तीचे अनाथालय  बघायला गेलो. तिथे बरेच हत्ती पाहिले, नंतर लहान मुलांनी हत्तींना फळे खाऊ घातली. ठिकाण तसे ठीकठीक होते. त्यानंतर  दंबुल्ला लेण्या (Dambulla Caves) बघायला गेलो.
Dambulla Caves ह्या लेण्या कॅंडी शहरापासून ७२ किलोमीटर आहे . सर्व लेण्या एका खडकामध्ये कोरल्या आहेत. एकूण ८० गुहा  आहेत पण त्यापैकी फक्त ५ गुहा सध्या  चांगल्या स्थितीत आहेत. या गुहांमध्ये गौतम बुद्धांच्या एकूण १५३ मूर्ती आणि चित्रे आहेत तसेच काही ठिकाणी स्थानिक राजा आणि हिंदू देवतांच्या मूर्ती  सुद्धा आढळतात. मूर्त्या आणि चित्रे खूप सुंदर आहे. ह्या लेण्या एक पुरातन स्थळ (Heritage site) म्हणून घोषित करण्यात आले आहे. सिगिरिया या जागेला सिगिरिया\ सिंहगिरी \ lion rock अशी नावे आहेत.
 ही एक पुरातन आणि ऐतिहासिक वास्तू आहे. वस्तुतः हा एक खूप मोठा आणि उंच खडक आहे जिथे कश्यप नावाच्या राजाने महाल बांधला होता अशी कथा आहे. हा रावणाचा महाल होता अशी पण एक आख्याईका आहे. हे ठिकाण युनेस्कोने पुरातन स्थळ म्हणून घोषित केले आहे. वर चढायला छोट्या पायऱ्या आहेत आणि चढण तीव्र आहे. मध्यवर्ती भागात एका गुहेत पुरातन चित्रे आढळतात. तिथून वर गेल्यावर मोराची पावले वाटतील अशी रचना आहे आणि तिथून राजवाडा परिसर चालू होतो. वर गेल्यावर राजाचा दरबार आणि इतर व्यवस्था बघता येते. वरून हिरव्यागार जंगलाचे विहंगम दृष्य दिसते. चुकवू नये असे हे ठिकाण आहे पण पायऱ्या चढायची मानसिक तयारी करून जावे.
आजचा दिवस खूप थकवणारा होता पण आज चांगल्या ठिकाणांना भेट दिल्याचे समाधान होते. सहलीचा तीसरा दिवस आजचे पहिले ठिकाण होते ‘Spice and Herbal Garden’ ही बाग काही एकरामध्ये पसरली आहे. इथे बऱ्याच आयुर्वेदिक झाडांची लागवड करण्यात आली आहे. एकदा पाहण्यासारखे ठिकाण आहे. तिथून nuwara eliya इथे जाण्यासाठी निघालो. वाटेमध्ये एके सुंदर हनुमान मंदिर आहे जे एका डोंगरावर बांधले आहे. चिन्मय मिशन संस्थेने हे मंदिर २० वर्षांपूर्वी बांधले.  मंदिर अतिशय सुंदर आहे आणि तेथुन दिसणारा निसर्ग अप्रतिम आहे. तेथील एका हॉटेल मध्ये जेवण करून पुढे निघालो. पुढे रस्त्यात ‘रामबोडा’ धबधबा लागला.
 पुढे एका चहाच्या फॅक्टरीला भेट दिली. तिथे पानांपासून चहाची पावडर बनवण्याची पूर्ण पद्धत सांगण्यात आली. ही फॅक्टरी आणि आजूबाजूचे चहाचे मळे उटीची आठवण देत होते. या परिसरातून जाताना सर्वत्र चहाचे मळे दिसत होते, काही ठिकाणी थांबून फोटो काढून घेतले. थोडा वेळ चहाच्या मळ्यातून प्रवास करून ‘Nuwara Eliya’ इथे पोचलो. Nuwara Eliya हे डोंगरांमध्ये वसलेले छोटे शहर आहे. याला little england असेही म्हणतात. वातावरण अतीशय आल्हाददायक होते. अतिशय योग्य पद्धतीने वसवलेले शहर आहे असे फिरताना लगेच लक्षात येते. इथे ब्रिटिशांनी बांधलेल्या बऱ्याच वास्तू दिसतात आणि ब्रिटिशांच्या अस्तित्वाच्या खुणा दिसतात. श्रीलंकेच्या राष्ट्रपतींचे एक निवासस्थान आहे. शहराच्या मध्यवर्ती भागात ‘व्हिक्टोरिया पार्क’ नावाची सुंदर बाग आहे, तिथे संध्याकाळी भेट दीली. बाग २७ एकर परिसरामध्ये पसरली असून अतिशय स्वच्छ आणि सुंदर आहे . वेगवेगळ्या पद्धतीची फुलझाडे येथे दिसतात. बर्याच वेळ येथे भटकंती केल्यानंतर आम्ही रात्री उशिरा हॉटेलवर पोचलो. सहलीचा चौथा दिवस आज सकाळी ८:०० ला हॉटेल सोडले. nuwara elliya शहराच्या मध्यभागी एक सुंदर आणि मोठा तलाव आहे तो म्हणजे ‘Gregory Lake’, त्या तलावामध्ये सकाळी बोटींग केले. तलाव आणि आजूबाजूचा परिसर सुंदर होता, युरोप मधील एखाद्या टुमदार गावामध्ये आहे असे वाटून गेले. तेथून आम्ही थेट जंगल सफारी साठी आमच्या पुढच्या ठिकाणी म्हणजे ‘Udawalawe National Park’ साठी रवाना झालो. प्रवास एकूण ४ तासांचा होता. 
वाटेमध्ये एके ठिकाणी मोठा धबधबा लागला, तेथे १०-१५ मिनिटे थांबलो होतो. रावण तिथे आंघोळीला यायचा अशी एक आख्याईका सांगण्यात आली. दुपारी साधारण ३:३० ला हॉटेलला पोहचलो. सामान हॉटेल टाकून सफारीसाठी रवाना झालो. Udawalawe National Park जंगल सफारीसाठी आम्हाला २ स्वतंत्र जीप देण्यात आल्या होत्या. सफारी चालू होण्यापूर्वी सर्वप्रथम हत्तीने  दर्शन देऊन जणू आमचे स्वागत केले. जंगल  मोठे आणि घनदाट होते. जंगल सफारीचा माझा पहिलाच अनुभव होता. सफारीदरम्यान मोर, मगर, ससे, वेगवेगळ्या प्रकारची हरणे, मगर द्रुष्टीस पडले. पक्षांमध्ये २-३ प्रकारचे गरुड, खंड्या दिसले. आमच्या २ जीप पैकी एका जीप मधील लोकांना चित्ता दिसला. आमची जीप तिथं पोहचे पर्यंत तो जंगलात गायब झाला. नंतर बराच वेळ वाट पाहिली पण चित्ता काही दिसला नाही. २-३ तास सफर करून हॉटेलवर परतलो.
सहलीचा पाचवा दिवस आज सकाळी आवरून आमच्या पुढच्या ठिकाण म्हणजे bentotaa साठी रवाना झालो. साधारण ३-४ तासांच्या प्रवासानंतर आम्ही बेंटोटा जवळ पोचलो. आमचे पहिले ठिकाण होते मदू नदीमध्ये बोट ride.

Madu river boat ride : मदू गंगा ही श्रीलंकेमधील एक मोठी नदी आहे. तिच्यामध्ये एकूण ६० बेटे आहेत. आम्हाला life jacket देऊन बोटीमध्ये बसवण्यात आले. या ride साठी जाताना टोपी आणि goggle जवळ ठेवणे नेहमी चांगले. काही बोटींना ताडपत्री असते पण ती ride च्या वेळी अडसर ठरते म्हणून काढून टाकतात. नदीचे पात्र खूप विशाल आहे आणि कडेला घनदाट वृक्ष आणि त्यांची आक्राळ-विक्राळ मुळे (Mangroes) दिसतात. बऱ्याच ठिकाणी वृक्षांमधून जाणारे बोगदे खूप सुंदर दिसतात. २-३ वेळा आम्ही अश्या बोगद्यांमधून गेलो. येथील लोकांचा मासेमारी हा मुख्य व्यवसाय आहे त्यामुळे नदीमध्ये बऱ्याच ठिकाणी एका वेगळ्या प्रकारची बांबूने तयार केलेली जाळी दिसतात. थोड्या वेळ बोटीने प्रवास केल्यानंतर बोट एका बेटावर थांबली. त्या बेटावर दालचिनी मोठ्या प्रमाणात घेतली जाते. तेथील स्थानिक महिलेने खोडापासून दालचिनी काढायचे प्रात्यक्षिक दाखवले.

तिथून आमची बोट एका दुसर्या ठिकाणी नेली जिथे Fish Farming होते. इथे एका छोट्या पाण्याच्या कुंडात भरपूर छोट्या आकाराचे मासे सोडले जातात आणि पर्यटकांना त्यामध्ये पाय सोडून बसायची परवानगी देतात. पाय सोडल्यावर छोटे मासे पायापाशी जमा होऊन चावण्याचा प्रयत्न करतात त्यामुळे खूप मजा येते. मासे छोटे असल्यामुळे त्यांचे दात लागत नाही तर गुदगुल्या होतात. हा एक चांगला अनुभव होता. पूर्ण नदीची सफर २-२.५ तास चालली.
२-३ तास बोटीतून सफर केल्यावर जेवण करून आम्ही पुढच्या ठिकाणी रवाना झालो. पुढचे ठिकाण होते Turtle Hatchery म्हणजेच कासव संगोपन केंद्र. Turtle Hatchery कासवाची मादी समुद्र किनाऱ्यावर येऊन अंडी देते आणि ती जमिनीमध्ये लपवून ठेवते. काही दिवसानंतर अंड्यातून पिल्ले बाहेर येतात आणि ती समुद्रात जातात, पण काही पक्षी, खेकडे आणि इतर प्राणी ती लहान पिल्ले समुद्रात जाण्याआधी खाऊन टाकतात. त्यामुळे कासवांची संख्या खूप घटली आहे म्हणून त्यांचे रक्षण करण्यासाठी या केंद्रातील लोकं विशेष प्रयत्न करतात. या केंद्रामध्ये अंडी जपून ठेवतात. अंड्यातून पिल्ले बाहेर आल्यावर त्यांना २ महिने केंद्रातच वाढवले जाते आणि मग समुद्रामध्ये सोडले जाते. या केंद्रात इतर अनेक वेगवेगळ्या आकाराची कासवे पर्यटकांसाठी ठेवली आहे. एक कासव तर १०० वर्ष वयाचे आणि २२५ किलोचे होते. लहान मुलांनी इथे खूप धमाल केली. इथून वॉटर स्पोर्ट्स साठी एका ठिकाणी थांबलो. मुलांनी इथे banana ride केली. बाकी विशेष काही नव्हते. तिथून निघून हॉटेलवर पोहचलो. हॉटेलच्या मागे समुद्र किनारा होता, तिथे संध्याकाळी फिरायला गेलो.
सहलीचा सहावा दिवस आजचा दिवस निवांत होता. आज सकाळी सगळे समुद्रावर खेळायला गेलो होतो.. सगळ्या मुलांनी आणि काही मोठ्यांनी समुद्रात पोहणाच्या आनंद घेतला. हॉटेलची जागा खूप छान होती. सकाळी नाश्ता झाल्यानंतर आम्ही समुद्रकिनारी भरपूर फोटो काढले.सकाळी १० वाजता आमचे शेवटचे ठिकाण कोलंबो येथे रवाना झालो. कोलंबो तिथून ३२ कि. मी. होते.
कोलंबो हे शहर श्रीलंकेचे  महत्वाचे शहर आहे. कोलंबो ला पोचल्यानंतर आम्ही शहराची सफर केली. टूर गाईडने शहराची चांगली माहिती दिली. फिरताना आम्ही वेगवेगळी  ५-स्टार हॉटेल्स, काही महत्वाच्या सरकारी इमारती, बँकांची मुख्य कार्यालये पाहीली. पंतप्रधान आणि राष्ट्रपती निवास सुद्धा बघितले. एकंदरीत एखाद्या मुख्य राजधानीच्या शहरासारखे हे पण शहर होते. चीन येथे खूप मोठ्या प्रमाणात गुंतवणूक करत आहे आणि आपल्या व्यापाराचा मोठ्या प्रमाणात विस्तार करत आहे ही गोष्ट प्रामुख्याने जाणवली. सफर पूर्ण झाल्यानंतर हॉटेल वर पोचलो. आज संध्याकाळी बराच निवांत वेळ होता. सहलीचा आजचा आमचा श्रीलंकेतला शेवटचा दिवस. सकाळी सामान भरून हॉटेल सोडले. एका ठिकाणी शॉपिंग केले. बर्याच चांगल्या भेट वस्तू मिळाल्या. दुपारचे जेवण करून एअरपोर्टला रवाना झालो.

संध्याकाळचे विमान पकडून चेन्नईला आलो आणि चेन्नईहून नागपूरला ११ वाजता घरी पोचलो.
श्रीलंका फिरताना एक गोष्ट प्रामुख्याने जाणवली आणि ती म्हणजे सगळ्या ठिकाणी दिसलेली हिरवाई. तसेच भेट दिलेल्या सर्व ठिकाणी कमालीची स्वच्छता दिसली. लोकांची गर्दी आणि विक्रेत्यांचा त्रास सुद्धा कुठेही जाणवला नाही. तिथली जवळजवळ सगळी वाहने भारतीय कंपन्यांची आहेत. सगळ्या वस्तूंमध्ये भारतीय कंपन्यांनी केलेला शिरकाव लक्षात येण्यासारखा आहे. कोलंबो शहरामधील वाहतुकीची शिस्त हा सुद्धा एक सुखद धक्का होता.

अशाप्रकारे एकूण ७ दिवसाच्या आमच्या ट्रिप मध्ये सगळ्या प्रकारच्या निसर्गाचा आस्वाद, बर्याच चांगल्या आठवणी आणि अनुभव घेऊन आमची श्रीलंका ट्रिप सुफळ संपूर्ण झाली.

Ganesh Bhusari ( Travel Guru )
Travel Lover & Blogger